नो वर्क, नो पे के आदेश पर भड़के कर्मचारी नेता, बड़े आंदोलन की तैयारी, पीछे हटने को तैयार नहीं, सरकार के सख्त रुख का विरोध
देहरादून।
पूर्णानंद नौटियाल, महामंत्री उत्तरांचल मिनिस्टीरियल फैडरेशन ऑफ सर्विसेज एसोसिएशन के अनुसार लोकतंत्र में विरोध का अधिकार कर्मचारियों को मिला है। उसमें कार्यबहिष्कार, हड़ताल भी शामिल है। नो वर्क नो पे का आदेश कर्मचारियों की आवाज को दबाने वाला है। एक ओर सरकार तमाम लाल बत्तियां बांट का खर्च बढ़ा रही है। दूसरी ओर कर्मचारियों से कटौती के बेतुके आदेश हो रहे हैं।
पंचम बिष्ट, महामंत्री उत्तराखंड पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन ने कहा कि आंदोलन जारी रहेगा। किसी भी सूरत में आंदोलन वापस नहीं लिया जाएगा। बेहतर होता कि सरकार वार्ता करती। उल्टा धमकाया जा रहा है। कर्मचारी दबने वाले नहीं है। कर्मचारियों के सामने कोर्ट के दरवाजे भी खुले हुए हैं।
अरुण पांडे, कार्यकारी महामंत्री राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने कहा कि सरकार को ऐसे आदेश नहीं करने चाहिए थे। पहले बात की जानी चाहिए थी। धमकी देना ठीक नहीं है। सीएम तत्काल दखल दें। कर्मचारी कभी भी दबा नहीं है। न ही दबाया जा सकता है। लोकतांत्रिक अधिकार को छीना नहीं जा सकता।
एसएस माजिला, महामंत्री राजकीय शिक्षक संघ ने कहा कि सरकार यदि सुनेगी, तो मजबूरी में आंदोलन करना पड़ता है। आंदोलन होगा या नहीं, ये सरकार पर निर्भर है। सरकार ही कर्मचारियों को आंदोलन के लिए मजबूर करती है। चार साल से शिक्षकों की मांगों को तवज्जो ही नहीं दी गई। ऐसे में इस तरह के आदेश पूरी तरह भड़काने वाले हैं।
सूर्यप्रकाश राणाकोटी, महामंत्री राज्य निगम कर्मचारी महासंघ ने कहा कि इस तरह के आदेश कर बेवजह कर्मचारियों को भड़काने का काम किया जा रहा है। जब बात वार्ता से निपट सकती है, तो इस तरह के आदेश करने का क्या तुक है। ये नौकरशाही का सरकार को बदनाम और कर्मचारी संगठनों से दूरी बढ़ाने का प्रयास मात्र है।
अजय बेलवाल, महामंत्री डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ ने कहा कि कोई भी कर्मचारी संगठन आंदोलन नहीं चाहता। हर बार उसे मजबूर किया जाता है। प्रमोशन, वेतन विसंगति जैसे मसलों को जब लटकाया जाएगा, तो कर्मचारियों को मजबूर होकर आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस आदेश को तत्काल वापस लिया जाए।