कानूनविद सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने विधानसभा पर उठाए सवाल, बोले 2016 से पहले वालों पर क्यों नहीं की कार्रवाई, बाद वालों को किस आधार पर किया बर्खास्त, तत्काल बहाल कर गलती सुधारे विधानसभा, फ्री में लड़ेंगे केस

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देहरादून।

विधानसभा के बर्खास्त कार्मिकों को लेकर कानूनविद भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा की वे इन कर्मचारियों की पैरवी करने आए हैं। इनके साथ हुए अन्याय को आपके बीच रखने आया हूं|
कहा की यह मामला जब मेरे संज्ञान में आया, तो मैंने इस पूरे विषय का गंभीरता से अध्ययन किया, एक एक बारिक पहलू को जाना| सुनकर थोड़ा अजीब भी लगा हैरान हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है, एक ही संस्थान में एक ही प्रक्रिया से नियुक्ति पाए कार्मिकों की वैधता में दो अलग-अलग निर्णय कैसे, कुछ लोगों की नियुक्ति को अवैध बताने के बाद भी बचाया गया है एवं कुछ लोगों को अवैध करार कर भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाकर बर्खास्त भी कर दिया गया, यह कार्यवाही कहीं से भी उचित नहीं लगती| एक विधान एक संविधान का उल्लंघन हुआ है।

जब उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में भर्ती प्रक्रिया वर्ष 2001 से वर्ष 2022 तक एक समान है जोकि माननीय विधानसभा अध्यक्ष महोदया द्वारा गठित कोटिया कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है साथ ही उत्तराखंड सरकार के महाधिवक्ता ने भी इस विषय पर अपनी कोई राय देने से इनकार किया है|

अगर नियुक्तियों में नियमों का उल्लंघन हुआ है तो वह उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही हुआ है लेकिन यह कहां का न्याय है की वर्ष 2001 से 2015 की नियुक्ति को संरक्षण दिया जा रहा है और वहीं वर्ष 2016 से वर्ष 2022 तक के कार्मिकों को 7 वर्ष की सेवा के उपरांत एक पक्षीय कार्यवाही कर बर्खास्त किया गया है इस निर्णय कि मैं घोर निंदा करता हूं|

मेरी जानकारी में है कि वर्ष 2017 में इन्ही कार्मिकों की नियुक्तियों को लेकर एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय नैनीताल में दायर हुई। वर्ष 2018 में उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया तथा नियुक्तियों को वैध करार दिया। तब इसी विधानसभा ने कार्मिकों के पक्ष में माननीय उच्च न्यायालय में काउंटर एफिडेविट फाइल किया और नियुक्तियों को वैध तथा विधिसम्मत बताया। अब वर्ष 2022 में यही विधानसभा द्वारा यू-टर्न लेकर नियुक्तियों को अवैध बताया जा रहा है यह भी गजब की बात है|

बिना कोई कारण बताए बिना शो कॉज नोटिस दिए बिना सुनवाई का अवसर दिए कर्मचारियों को बर्खास्त कर देना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की मूल भावना के विपरीत है।

मैंने विगत दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी को पत्र लिखकर बर्खास्त कार्मिकों की बहाली के लिए अनुरोध किया था, उस पत्र पर क्या कार्रवाई हुई वह मैं अभी नहीं जानता| आज इस प्रेस वार्ता के माध्यम से मैं बर्खास्त कार्मिकों की आवाज बन कर आया हूं, मैं चाहता हूं उत्तराखंड के इन युवाओं के साथ न्याय हो| जिस देश के संविधान में आर्टिकल 14 समानता का अधिकार देता है वहां एक विधान एक संविधान की परिभाषा को कलंकित करने का कार्य किया गया है|

अगर उत्तराखंड सरकार और विधानसभा सचिवालय मेरे लिखे हुए पत्र पर विचार नहीं करती है तो मैं निर्दोष कार्मिकों के पक्ष में उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय में निशुल्क स्वयं पैरवी करूंगा, बर्खास्त कार्मिकों को न्याय दिलाने का काम करूंगा|

उत्तराखंड सरकार एवं विधानसभा सचिवालय
को चाहिए कि कार्मिकों के संबंध में सर्वदलीय बैठक बुलाकर या फिर किसी अन्य प्रक्रिया से सकारात्मक निर्णय लेकर बहाली की जाए| सरकार का मकसद रोजगार देना होना चाहिए ना कि रोजगार को छीना जाए|

सरकार एवं विधानसभा अध्यक्ष महोदया को इन कार्मिकों को बहाल कर नियमित करके भविष्य के लिए ठोस नीति बनाते हुए विशाल हृदय का परिचय देना चाहिए ताकि भविष्य में कोई नियोक्ता कभी इस प्रकार की नियुक्ति ना कर सके|

“ऐसे तौर-तरीके मुझे भाते नहीं,जिसमें न्याय निर्दोषों के हक में आते नहीं

मुझे कोई गुरेज नहीं है सही को सही और गलत को गलत कहने का जो न्याय संगत है मैं उसी पर विचार करके इन कार्मिकों को पुनः बहाल होते देखना चाहता हूं| जो पहाड़ की युवक एवं युवतियां आज अपने जायज न्याय की मांग को लेकर 2 महीने से सड़कों पर बैठे हैं उनके साथ न्याय जरूर होना चाहिए, इसके लिए मैं इन कार्मिकों के साथ जुड़ा हूं| मेरा तो यही कहना है

“अगर न्याय सही हो तो कल्याणकारी साबित होता है अन्यथा न्याय को अन्याय बनने में समय नहीं लगता है”

मैं आज आप सभी पत्रकार भाइयों के माध्यम से मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी एवं उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष महोदया से यही अनुरोध करूंगा कि इन बर्खास्त कार्मिकों के पक्ष में गंभीरतापूर्वक विचार कर इन सब की तत्काल बहाली की जाए।

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