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एक करोड़ का ट्यूबवेल इंजीनियरों के खेल में हुआ बर्बाद, एक करोड़ के ट्यूबवेल से आया गंदा पानी, तो दूसरे एक करोड़ के टैंक में पानी ही नहीं 

एक करोड़ का ट्यूबवेल इंजीनियरों के खेल में हुआ बर्बाद, एक करोड़ के ट्यूबवेल से आया गंदा पानी, तो दूसरे एक करोड़ के टैंक में पानी ही नहीं

देहरादून।

राज्य में पेयजल योजनाओं का निर्माण जल निगम, एडीबी, स्मार्ट सिटी समेत तमाम दूसरी एजेंसी कर रही हैं। बाद में इनका संचालन जल संस्थान कर रहा है। इन एजेंसियों के बीच समन्वय न होने का सीधा असर पेयजल योजनाओं पर पड़ रहा है। गंगोत्री विहार देहरादून में एक करोड़ का ट्यूबवेल एक साल से पड़ा है बंद, यहां गंदा पानी आ रहा है। बीमा विहार में ऐसा ओवरहेड टैंक बनाया गया, जहां पानी ही नहीं पहुंच पा रहा है। पौड़ी नानघाट योजना में 90 करोड़ खर्च कर भी पर्याप्त पानीं मिल रहा। नैनीताल में एडीबी के टैंकों से लगातार लीकेज की शिकायतें आती रही हैं। हर केस में पेयजल एजेंसियां एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ती नजर आ रही है। खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
गंगोत्री विहार में अमृत योजना से एक करोड़ की लागत से 2019 ट्यूबवेल बनाया गया। ये ट्यूबवेल बामुश्किल जनवरी 2020 के करीब तक पानी दे पाया। उसके बाद से पूरे एक साल से ट्यूबवेल खराब है। जिस अमृत डिवीजन ने ट्यूबवेल बनाया, वो भी बंद हो गया है। काम जल निगम ने कराया है। उसने जिम्मेदारी जल संस्थान पर डाल अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। जबकि एक ट्यूबवेल की लाइफ कम से 15 से 25 साल आंकी जाती है। देहरादून में तो कई ट्यूबवेल 40 साल से भी ज्यादा समय से पानी दे रहे हैं। गंदे पानी के कारण ट्यूबवेल बंद है। इसका असर कैनाल रोड, सहस्त्रधारा रोड क्षेत्र की दस हजार की आबादी पर पड़ रहा है।
एडीबी के बजट से बीमा विहार में एक करोड़ से अधिक लागत का टैंक बनाया गया। करीब इतनी ही लागत का ट्यूबवेल बनाया गया। अनुमान लगाया गया कि ट्यूबवेल से 1700 एलपीएम पानी मिलेगा, लेकिन पानी 100 एलपीएम ही मिला। ऐसे में इस पानी से टैंक नहीं भर रहा है। शहंशाही स्रोत से जो पानी आता है, उससे टैंक आधा भी नहीं भर पाता। अब विभाग एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। राजेंद्रनगर देहरादून में भी एडीबी का बनाया ट्यूबवेल फेल हो गया है।

पौड़ी नानघाट से भी नहीं मिला पर्याप्त पानी
जल निगम ने 2010 में नानघाट योजना का निर्माण करीब 90 करोड़ की लागत से किया। इस योजना से सात एमएलडी के करीब पानी मिलना था। जो सर्दियों में ही साढ़े तीन एमएलडी नहीं मिल पाता। गर्मियों में स्रोत सूखने की स्थिति में आ जाता है।

बीरोंखाल, भरसार विवि पेयजल योजना में भी गड़बड़
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली औद्यानिकी भरसार विवि में बिना पानी के ही टैंक बना दिए गए। लागत बढ़ाने को प्रोटेक्शन वॉल बना दी गई। इसी तरह बीरोंखाल योजना में जल निगम के सिविल इंजीनियरों ने गलत हेड का चयन किया। इससे जो पंप आए, वो लक्ष्य तक पानी ही नहीं पहुंचा पाए। बाद में पंप बदलने पड़े। वित्तीय नुकसान अलग हुआ।

करोड़ों की लागत से बिछी लाइनों में पानी ही नहीं
पाइप लाइन को बिछाने में एडीबी के बजट का जमकर दुरुपयोग हुआ। शहंशाही स्रोत से करोड़ों की लाइन पहले वॉटक वर्क्स और फिर सर्वे चौक तक लाई गई। जिसका कोई बड़ा इस्तेमाल नहीं हो रहा है। बंगाली कोठी, कारगी, बंजारावाला, अजबपुर, हरिद्वार बाईपास, सरस्वती विहार समेत तमाम शहर के तमाम हिस्सों में अमृत योजना में करोड़ों की लाइन बिछा दी गई है। लेकिन यहां भी पानी सप्लाई अभी तक शुरू नहीं हुआ है। इसी तरह पांच साल पहले एडीबी में डालनवाला, कर्जन रोड, रेसकोर्स, चंदरनगर, कोर्ट रोड समेत तमाम स्थानों पर लाइन बिछाई गई, लेकिन यहां भी आज तक इन लाइनों से पानी नहीं मिल पाया है।

अंडर ग्राउंड टैंक पर पानी नहीं
परेड ग्राउंड में अंडरग्राउंड वॉटर टैंक बनाया गया। इस काम को भी लंबा समय हो चुका है। करोड़ों खर्च करने के बाद भी आज तक इसका इस्तेमाल नहीं हो पाया है। टैंक को कनेक्ट तक हीं किया गया।

कर्जन रोड टैंक, ट्यूबवेल शोपीस
डालनवाला कर्जन रोड पर ट्यूबवेल तैयार किया गया। इसके बाद 70 प्रतिशत टैंक का भी काम पूरा हो गया। अचानक बताया जाता है कि जिस भूमि पर ये निर्माण हो रहा है, वो विवादित है। इस विवाद के कारण आज तक करोड़ों की लागत खर्च कर बने ट्यूबवेल का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। टैंक भी अधर में लटक गया है।

जहां जरूरत, वहां की सुध नहीं
झंडा बाजार, नगर निगम का टैंक जर्जर हाल है। पानी की एक बड़ी मात्रा लीकेज में बर्बाद हो रही है। इनके स्थान पर नये टैंक बनाए जाने की मांग की जा रही है। लेकिन प्रस्ताव धूल फांक रहे हैं।

कोई भी ट्यूबवेल बनता है, तो कम से कम 20 से 25 साल तक चलता है। आज भी जल संस्थान के पास 40 साल पुराने ट्यूबवेल तक पूरी क्षमता से पानी दे रहे हैं। ऐसे में चार महीने में कैसे ट्यूबवेल खराब हो गया है। जल निगम ने जिस भी कंपनी से ये काम कराया है, उसे नया ट्यूबवेल बना कर देना होगा।
एसके शर्मा, सीजीएम जल संस्थान

जल संस्थान को ट्यूबवेल चलाना ही नहीं आया। गलत संचालन के कारण ट्यूबवेल खराब हुआ है। जब ट्यूबवेल ठीक चल रहा था, तो क्यों उसकी मोटर बदली गई। क्यों ट्यूबवेल में दस फीट पाइप बढ़ा दिया गया। क्यों चूड़ीदार पाइप की जगह फ्लैंज पाइप डाला गया। तय क्षमता से अधिक का क्यों पंप डाला गया। इसमें जल निगम की कोई गलती नहीं है।
सुभाष चौहान, मुख्य अभियंता जल निगम

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