पहाड़ी बोली के साथ सीएम त्रिवेंद्र ने छुई पहाड़ की नब्ज, कराया अपनेपन का अहसास 

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पहाड़ी बोली के साथ सीएम त्रिवेंद्र ने छुई पहाड़ की नब्ज, कराया अपनेपन का अहसास

देहरादून।

पौड़ी जनपद में आयोजित नयारघाटी महोत्सव कई मायनों में अहम है। आयोजन से यहां पर्यटन विकास की उम्मीदों को पंख लगे तो रोजगार तलाशती आंखों के सपने भी खुली आंखों में साफ दिखे। लेकिन इन सब के बीच जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपना संबोधन शुरू किया तो माटी की महक और भी सोंधी हो गई। कभी जिम्मेदारियां आगे रही तो उबाल मारती भावनाएं। यानी पूरी नयारघाटी ही अपनेपन के अहसास से गदगद हो गई।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत नयारघाटी के सीला बांघाट में जैसे ही प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने हैलीकाप्टर से उतर कर अपनी मिट्टी का स्पर्श किया तो हवाओं की सोंधी मिठास और भी अधिक महसूस होने लगी। कुछ हमउम्र मिले और नई पीढ़ी के जानकार। सीएम त्रिवेंद्र ने किसी के कंधे पर हाथ रखकर कुशलक्षेम पूछी तो किसी की पीठ भी थपथपाई। कोई खैरासैण का मिला तो कोई सीरों का। गावों की मिट्टी से नजदीक का वास्ता रखने वाले त्रिवेंद्र ने कभी सतपुली बजार की बात की तो अपनी पट्टियों के खेल खलियानों का हाल भी जाना। मंच से भी सामने बैठे आम जन से मानों उनका मौन संवाद बदस्तूर जारी रहा हो।
क्षेत्रीय विधायक मुकेश कोली समेत उच्च शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत, गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत और प्रभारी मंत्री सुबोध उनियाल का संबोधन पूरा हुआ उसके बाद मंच पर खैरासैण के उस लाल का संबोधन शुरू हुआ जिसे सुनने के लिए पूरी नयारघाटी सुबह से ही लालायित सी दिख रही थी। विकास और उपलब्धियों की बातें तो हर किसी मंच से होती रही हैं लेकिन सीएम त्रिवेंद्र का नयारघाटी में हुए संबोधन की बात ही कुछ निराली रही। ठेठ पहाड़ी अंदाज में जब उन्होंने अपना भाषण शुरू किया तो मानो पूरी नयारघाटी से लेकर मवालस्यूं, कफोलस्यूं, मनियारस्यूं समेत आसपास की पट्टियों के खेत खलियान तक मुस्कराने लगे।
संबोधन में क्षेत्र के लोगों ने जिस अपनेपन का अहसास किया उसे शब्दों में भले ही किसी ने बयां नहीं किया हो लेकिन अपनेपन की मिठास आमजन के दिलों में गहरे तक उतरती गई। उसी माटी से उठे जन कल्याण के इस पुरोधा ने रोजगार की बात की, आत्मनिर्भरता और पर्यटन विकास की बात, अपनी लोक संस्कृति, परंपरागत हुनर को फिर से जीवित करने की बात की तो खाली हाथों से लेकर पहाड़ों को जीवित रखने वाली मातृशक्ति में भी बेहतरी की आस जग गई। जैसे जैसे संबोधन आगे बढ़ता गया नयारघाटी के इस लाल की आत्मीयता भी बढ़ती गई। पूरे संबोधन में ठेठ गढ़वाली भाषा की मिठास बिखर रही थी तो सीएम त्रिवेंद्र और नयारघाटी के जनमानस दोनों ने खुद को एक दूसरे के बेहद करीब पाया। और नयार के लंबे फाट में सरसराती हवा भी इस अपनेपन के गदगदाते अहसास को गांव के गलियारों से लेकर खेत खलियानों तक पंहुचा रही थी।

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