सहकारिता चुनाव की सियासी बिछात बिछना शुरू, सभी सहकारी समितियों में शुरू होने जा रहा है सदस्यता अभियान, नवंबर में सहकारिता चुनाव की आचार संहिता, दिसंबर से प्रारंभिक समितियों के चुनाव

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सहकारिता चुनाव की सियासी बिछात बिछना शुरू, सभी सहकारी समितियों में शुरू होने जा रहा है सदस्यता अभियान, नवंबर में सहकारिता चुनाव की आचार संहिता, दिसंबर से प्रारंभिक समितियों के चुनाव

राज्य में सहकारिता चुनाव को लेकर अभी से सियासी बिछात बिछना शुरू हो गई है। सभी सहकारी समितियों में इसके लिए सदस्यता अभियान शुरू किया जा रहा है। प्रारंभिक सहकारी समितियों के चुनाव को लेकर आचार संहिता नवंबर महीने तक लगने की संभावना है। चुनाव दिसंबर में शुरू होंगे। ऐसे में अभी से कॉपरेटिव चुनाव को लेकर जमीनी स्तर पर जोड़तोड़ शुरू हो गया है।
कॉपरेटिव चुनाव में सबसे अहम बात यही है कि यदि जमीनी स्तर पर तैयारी नहीं की गई, तो चुनाव जीतना आसान नहीं रहता। इसके लिए प्रारंभिक समितियों से अपना जनाधार मजबूत करना जरूरी रहता है। इसके लिए सहकारी समितियों में जिस पार्टी के जितने अधिक सदस्य होंगे, उसकी जीत उतनी ही सुनिश्चित मानी जाती है। इसी जीत को सुनिश्चित करने को सहकारी समितियों में सदस्यता अभियान शुरू होने जा रहा है। इसके लिए सहकारिता मंत्री धन सिंह रावत ने रजिस्ट्रार कॉपरेटिव को समितियों में सदस्यता अभियान शुरू करने के निर्देश दे दिए हैं।
पिछली बार 2017 के दौरान सहकारी समितियों का जबरदस्त पोस्टमार्टम हुआ था। निष्क्रिय रहने वाली सहकारी समितियों को बड़े स्तर पर खत्म किया गया था। करीब 90 सहकारी समितियों को समाप्त किया गया था। ये ऐसी समितियां मानी गईं, जिनका गठन सिर्फ चुनावी गणित के तहत किया गया था। ये समितियां कुछ काम नहीं कर रही थी। इनके जरिए सिर्फ उच्च स्तर के चुनाव में निदेशकों का चुनाव अपने हिसाब से कराया जा रहा था। इन समितियों के खत्म होने का कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ था।

आचार संहिता से 45 दिन पहले बने सदस्य को ही वोटिंग का अधिकार
कॉपरेटिव चुनाव में मतदान करने को सहकारी समिति का सदस्य बनना जरूरी होताा है। मतदान का अधिकार भी तब मिलता है, जब चुनाव आचार संहिता लगने से करीब 45 दिन पहले की सदस्यता हो। 45 दिन से कम समय वाले सदस्य को वोटिंग का अधिकार नहीं रहता।

कॉपरेटिव संघों पर अभी भाजपा का कब्जा
पहले कॉपरेटिव के चुनाव में कांग्रेस की बादशाहत रहती थी। भाजपा को अपनी सरकार के रहते भी शीर्ष संस्थाओं पर कब्जा जमाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था। 2017 के बाद से हालात तेजी से बदल गए। भाजपा ने आसानी से न सिर्फ निचले स्तर, बल्कि उच्च स्तर की सभी शीर्ष सहकारी संस्थाओं पर अपना कब्जा जमा लिया। सभी जिला सहकारी बैंक, जिला सहकारी संघ, राज्य सहकारी बैंक, राज्य सहकारी संघ, डेयरी फैडरेशन, रेशम फैडरेशन पर भाजपा का ही कब्जा है।

यहां कांग्रेस का दुर्ग नहीं भेद पाई भाजपा
राज्य में कॉपरेटिव से जुड़े कई ऐसे मिनी बैंक, सहकारी बाजार, सहकारी समितियां ऐसी हैं, जहां भाजपा कभी भी कांग्रेस का दुर्ग नहीं भेद पाई। जिला उपभोक्ता भंडार देहरादून(सहकारी बाजार), अजबपुर साधन सहकारी समिति, डोईवाला सहकारी समिति, डोईवाला गन्ना सहकारी समितियों पर कांग्रेस का ही कब्जा है।

पिछले कुछ सालों के भीतर बेहद अहम हो गया है सहकारिता
2017 के बाद सहकारिता बेहद अहम सेक्टर हो गया है। नेशनल कॉपरेटिव डेवलपमेंट कार्पोरेशन के 3500 करोड़ के प्रोजेक्ट के बाद सहकारिता की पूछ अचानक बढ़ गई है। बिना ब्याज के एक लाख से लेकर पांच लाख तक ऋण बांटने से सहकारी समितियों, बैंकों और सहकारिता से जुड़े जनप्रतनिधियों की भी पूछ बढ़ी है।

सहकारिता चुनाव को लेकर आचार संहिता नवंबर महीने तक लग जाएगी। ऐसे में समय पर समितियों की सदस्यता शुरू कराने के निर्देश दे दिए गए हैं। चुनाव पूर्व की तरह पूरी पारदर्शी तरीके से ही संपन्न कराए जाएंगे।
धन सिंह रावत, सहकारिता मंत्री

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