देहरादून।
उत्तराखंड में सियासी हलको में गैरसैंण का नाम आते ही हलचल मच जाती है। अभी तक 22 दशकों में गैरसैंण को लेकर हुए सियासी फैसलों ने सिर्फ उसका नुकसान ही किया है। कोई ठोस पहल शुरुआत नहीं की गई। बिना जिला बनाए गैरसैंण को कमिश्नरी घोषित करने से भी गैरसैंण को ही नुकसान पहुंचा था। जाने अनजाने में राज्य के लोगों को ही गैरसैंण कमिश्नरी का हिस्सा बनने का विरोध तक करने को मजबूर होना पड़ा।
बिना किसी मजबूत धरातल के गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया। जबकि लोग दशकों से गैरसैंण को पहाड़ी राज्य की स्थायी राजधानी बनाए जाने की मांग करते रहे हैं। गैरसैंण को स्थायी की बजाय सिर्फ ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का भी विपक्षी दलों ने जमकर विरोध किया था।
अब गैरसैंण एकबार फिर सरकार की प्राथमिकता में है। इस बार सियासी शोर की बजाय धरातल पर मजबूत होमवर्क के साथ आगे बढ़ने की तैयारी है। इसके लिए गैरसैंण को चारों ओर से जोड़ने, बेहतर कनेक्टिविटी को सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। सीएम पुष्कर धामी ने जिस तरह से पौड़ी कमिश्नरी की पुरानी रौनक लौटाने को लेकर संकल्प लिया है, वो भी गैरसैंण की मूल अवधारणा का ही हिस्सा है। सीएम के पौड़ी कमिश्नरी को लेकर किए जा रहे फोकस के कारण ही सियासी हलचल मची हुई है।
गैरसैंण को लेकर कोई भी ईमानदार पहल तभी सार्थक मानी जाएगी, जब उसके लिए कोई मजबूत पहल होगी। गैरसैंण का विकास सुनिश्चित करने को पहले उसे जिला बनाकर मजबूत प्रशासनिक इकाई का गठन करना होगा। उसे कमिश्नरी बनाने से पहले भौगोलिक असल स्थिति का आंकलन करना होगा। पिछली बार गैरसैंण को कमिश्नरी बनाए जाने की घोषणा हुई। उसमें अल्मोड़ा को जोड़ने के फैसले का जबरदस्त विरोध हुआ था। ये पहला मौका था, जब पहाड़ के लोगों ने ही गैरसैंण कमिश्नरी से जुड़ने का विरोध कर दिया था। अल्मोड़ा जिले ने तो इस फैसले को संस्कृति नगरी अल्मोड़ा की पहचान को समाप्त करने तक का आरोप लगा दिया था।
इस मामले में पहले जरूरत गैरसैंण को जिला बनाने की थी। जिले में चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा, बागेश्वर के ऐसे हिस्सों को शामिल किया जाए, जो गैरसैंण मुख्यालय से दूर न हों।
जिले का गठन होने के बाद ही उसी अनुरूप कमिश्नरी का गठन होना चाहिए था, लेकिन बिना ठोस तैयारी के लिया गया फैसला धरातल पर उतरने से पहले ही विवादों में आ गया। ये फैसला सरकार पर इतना भारी पड़ा कि उसे तत्काल वापस लेना पड़ा। बिना किसी ठोस तैयारी के ही ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला हुआ। सभी सियासी जानकार जानते हैं कि गैरसैंण शब्द का इस्तेमाल बार बार 22 सालों से सरकारों ने नाकामियों को छुपाने के लिए किया। जब जब सियासी भंवर की स्थिति पैदा हुई, तब तब गैरसैंण शब्द का इस्तेमाल किया गया। इस सियासी मूवमेंट को लोग खूब समझ चुके हैं। अब लोकसभा चुनाव से पहले एकबार फिर गैरसैंण शब्द का सियासी इस्तेमाल शुरू हो गया है। अब भंवर में फंसे सियासी सफर की वैतरणी पार लगाने को फिर गैरसैंण शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस सियासी हलचल की एक वजह सीएम का लगातार पौड़ी जिले के विकास को लेकर फोकस होना भी है। पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत जैसे पहाड़ी जिलों में सीएम वीकेंड पर दो दो जनता के बीच गुजार रहे हैं। पहाड़ में रहकर पहाड़ के विकास का खाका खींच रहे हैं। दिन प्रति दिन मजबूत बड़ी सियासी लकीर खींचते जा रहे हैं, उसे लेकर भी सियासी प्रतिस्पधिर्यों में बेचैनी है। यही बेचैनी गैरसैंण के मामले में भी नजर आ रही है।