फिर विवादों में आया कर्मकार कल्याण बोर्ड, पुराने अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल ने नियम विरुद्ध हटाने का लगाया आरोप, तय समय से पहले ही हटाने के मामले में हाईकोर्ट में दायर की याचिका
उत्तराखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड को लेकर एकबार फिर नया विवाद खड़ा हो गया है। पूर्व अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल ने उन्हें नियम विरुद्ध पद से हटाने का आरोप लगाया है। इसे लेकर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है।
बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल का कहना है कि उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए हुई थी। शासन स्तर से हुए आदेश में साफ था कि तीन साल के लिए उन्हें अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया जाता है। इसके बावजूद उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के सीधे ही तय समय से पहले ही अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। जो कि पूरी तरह नियम विरुद्ध है। नियम विरुद्ध हुए इसी फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय मांगा गया है।
सत्याल के इस कदम ने सरकार को असहज कर दिया है। क्योंकि सत्याल पूर्व भाजपा सरकार में ही दायित्वधारी रहे हैं। ऐसे में उनके सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सत्याल त्रिवेंद्र रावत सरकार में श्रम संविदा बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। बाद में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के अचानक बोर्ड अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद सत्याल को बोर्ड अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी दी गई थी। बाद में उनकी भी इस पद से विदाई हो गई थी। इसके बाद सरकार ने अध्यक्ष पद पर किसी राजनीतिक व्यक्ति को बैठाने की बजाय सीधे नौकरशाही को ही कमान सौंप दी। सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि इस मामले में कोर्ट में पक्ष रखा जा रहा है।
त्रिवेंद्र रावत सरकार में बेहद मजबूत रहे शमशेर सिंह सत्याल
भाजपा की पूर्व त्रिवेंद्र रावत सरकार में शमेशर सिंह सत्याल की गिनती बेहद मजबूत लोगों में होती थी। उन्हें सीएम त्रिवेंद्र के खास लोगों में गिना जाता था। यही वजह रही, जो उन्हें श्रम संविदा बोर्ड के अध्यक्ष के साथ ही कर्मकार कल्याण बोर्ड अध्यक्ष का भी जिम्मा दिया गया।
बोर्ड की गड़बड़ियों की जांच पड़ी है डंप
कर्मकार बोर्ड में साइकिलों श्रमिकों को बांटे जाने के नाम पर भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुईं। स्वयं सरकार के स्तर पर कराई गई जांच में गड़बड़ियों की पुष्टि हुई। डीएम देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर, पौड़ी ने अपनी जांच रिपोर्ट में साफ किया कि जितनी साइकिलें खरीदी गईं, वो पात्र लोगों तक नहीं पहुंची। बड़े पैमाने पर साइिकलों का हिसाब भी नहीं मिल रहा है। सभी ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की थी। इसके बाद तत्कालीन सचिव चंद्रेश यादव ने भी एसआईटी जांच की संस्तुति करते हुए फाइल उच्च स्तर पर भेज दी थी। हालांकि अभी तक चार महीने गुजरने के बाद भी कोई आदेश जारी नहीं हुए हैं।
400 करोड़ से अधिक का बजट हुआ था खर्च
बोर्ड ने 2017 से 2022 के बीच करीब 400 करोड़ से अधिक का बजट खर्च किया। 100 करोड़ से अधिक का बजट श्रमिकों के स्किल डेवलपमेंट पर ही खर्च कर दिया। 11 करोड़ से अधिक के सैनेट्री नैपकिन खरीदे गए। 30 करोड़ से अधिक की साइकिलें खरीदी गईं। अंजान से अस्पतालों को श्रमिकों के इलाज के नाम पर करोड़ों का भुगतान किया गया। बोर्ड के यही खर्च अब गले की फांस बने हुए हैं।