राज्य में 21 हजार उपनल कर्मचारियों को कब मिलेगा इंसाफ
सचिवालय से लेकर प्रदेश भर के विभागों का जिम्मा अपने कंधों पर उठाए हुए हैं उपनल कर्मचारी जोखिम भरे ऊर्जा सेक्टर में मुख्यालय, ऑफिस से लेकर खतरनाक लाइनों की भी जिम्मेदारी
जीटी रिपोर्टर देहरादून
राज्य के 21 हजार उपनल कर्मचारी सरकार से अपने लिए इंसाफ मांग रहे हैं। उपनल कर्मचारी सचिवालय से लेकर प्रदेश भर के विभागों का जिम्मा अपने कंधों पर उठाए हुए हैं। जोखिम भरे ऊर्जा सेक्टर में मुख्यालय, ऑफिस से लेकर खतरनाक लाइनों की भी जिम्मेदारी इन्हीं बेहद कम वेतन पाने वाले उपनल कर्मचारियों पर है। इसके बाद भी इनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हाईकोर्ट कई बार इन्हें नियमित करने और समान काम का समान वेतन देने के आदेश कर चुका है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। उल्टा ऊर्जा विभाग में उपनल कर्मचारियों के पदों पर सीधी भर्ती की बार बार तैयारी की जा रही है। जबकि हाईकोर्ट इस पर रोक लगा चुका है। शासन स्तर से तीनों निगमों को खाली पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू किए जाने के निर्देश भी दिए गए थे। इसमें बड़ी संख्या में ऐसे भी पद हैं, जिनमें फिलहाल उपनल कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। तकनीकी ग्रेड, डाटा एंट्री ऑपरेटर और लिपिक संवर्ग में उपनल कर्मचारी तैनात हैं। उपनल कर्मचारियों को डर है कि यदि इन पदों पर सीधी भर्ती हो गई, तो उनके भविष्य पर संकट खड़ा हो जाएगा। पूर्व में भी ऊर्जा निगम ने तकनीकी ग्रेड के पदों पर भर्ती की तैयारी की थी। इसे उपनल कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। विद्युत संविदा कर्मचार संगठन के अध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि हाईकोर्ट ने नई भर्ती पर रोक लगा दी थी। उपनल कर्मचारियों को समान काम का समान वेतन, नियमितीकरण का लाभ देने के निर्देश दिए थे। कहा कि कोर्ट के आदेश पर विज्ञप्ति निरस्त हुई। ऐसे में अब किस आधार पर दोबारा सीधी भर्ती के आदेश दिए गए। ये सीधे तौर पर हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना है। सरकार ने स्थिति स्पष्ट नहीं की, तो अवमानना याचिका दायर की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है प्रकरणश्रम औद्योगिक न्यायाधिकरण हल्द्वानी और हाईकोर्ट उपनल कर्मचारियों के पक्ष में आदेश कर चुका है। कोर्ट के अनुसार उपनल कर्मचारियों को नियमित किया जाना है। जो कर्मचारी फिलहाल नियमित नहीं हो सकते, उन्हें नियमित होने तक समान काम का समान वेतन दिया जाए। इसी के आधार पर ऊर्जा निगम में पांच डाटा एंट्री ऑपरेटर को समान काम का समान वेतन का लाभ भी मिल रहा है। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश को ऊर्जा निगम समेत स्वयं सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
कांग्रेस सरकार ने बनाई थी नियमितीकरण नियमावलीपूर्व कांग्रेस सरकार ने उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर नियमावली बनाई थी। इसमें पांच साल की सेवा पूरी करने वाले उपनल कर्मचारियों को संविदा के दायरे में लाने और संविदा पर पांच साल पूरा होते ही उन्हें नियमित किए जाने की व्यवस्था दी गई थी। बाकायदा कैबिनेट से इसका आदेश हुआ। उपनल कर्मचारी भी इस व्यवस्था पर राजी हो गए थे। लेकिन इस नियमावली पर आगे कुछ पहल नहीं हुई।
सरकार सिर्फ ये बता दे कि वो किन पदों को रिक्त मान रही है। अकेले ऊर्जा निगम में ही 2686 पदों पर उपनल कर्मचारी काम कर रहे हैं। अधिकतर उपनल कर्मचारी 10 से 15 साल से सेवाएं दे रहे हैं। सरकारी सेवा में आवेदन की उम्र भी निकल चुकी है। इन्हीं के पक्ष में हाईकोर्ट फैसला कर चुका है। सरकार क्या कोर्ट की अवमानना करते हुए इन पदों पर भर्ती करने जा रही है।विनोद कवि, अध्यक्ष विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन
सभी विभागों की जिम्मेदारी उपनल कर्मचारियों ने संभाली है। हाईकोर्ट बार बार कह रहा है कि उपनल कर्मचारियों को नियमित किया जाए। नियमित न होने तक उन्हें समान का समान वेतन दिया जाए। इसके बाद भी शासन में बैठे अफसर कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं। सरकार को गुमराह कर सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया गया है। सरकार तत्काल केस वापस ले।दीपक चौहान, अध्यक्ष उत्तराखंड उपनल कर्मचारी महासंघ
राज्य के पॉवर सप्लाई सिस्टम को संभालने में उपनल कर्मचारियों की बेहद अहम भूमिका है। इन कर्मचारियों को नियमित करना, एसोसिएशन की प्रमुख मांगों में हमेशा शामिल रहा है। नियमितीकरण को लेकर हाईकोर्ट और पूर्व सरकार के आदेश को तत्काल लागू किया जाए।डीसी गुरुरानी, अध्यक्ष ऊर्जा ऑफिसर सुपरवाइजर एंड स्टाफ एसोसिएशन
जब हाईकोर्ट नियमितीकरण के आदेश दे चुका है, तो क्यों उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे नहीं दिया। ऐसे में हाईकोर्ट का आदेश आज भी यथावत है। जब पांच कर्मचारियों को आदेश का लाभ दिया जा रहा है, तो ये व्यवस्था सभी कर्मचारियों पर भी लागू की जाए। राकेश शर्मा, ऊर्जा संविदा संयुक्त मोर्चा