करोड़ों का नुकसान पहुंचाने वाले जल निगम के इंजीनियर हुए रिटायर, आज तक नहीं हुई कार्रवाई, योजना आयोग की जांचों में भी लीपापोती 

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करोड़ों का नुकसान पहुंचाने वाले जल निगम के इंजीनियर हुए रिटायर, आज तक नहीं हुई कार्रवाई, योजना आयोग की जांचों में भी लीपापोती

देहरादून।

जल निगम में इंजीनियरों की लापरवाही से करोड़ों की पेयजल योजनाओं में गड़बड़ी हुई। राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ, लेकिन आज तक किसी भी आरोपी इंजीनियर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। पेयजल योजनाओं में हुई गड़बड़ियों, घोटालों में दोषी पाए गए किसी भी जल निगम के इंजीनियर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। जबकि इन इंजीनियरों की लापरवाही के कारण राज्य को न सिर्फ करोड़ों का नुकसान हुआ, बल्कि जिस मकसद के लिए पेयजल योजनाएं तैयार की गईं, वो भी पूरा नहीं हुआ। अब इन घपलों से जुड़े अधिकतर इंजीनियर न सिर्फ रिटायर हो चुके हैं, बल्कि कार्रवाई की जद से बाहर निकल गए हैं।
पौड़ी शहर की पेयजल मांग को पूरा करने को 71.28 करोड़ लागत से नानघाट पेयजल योजना तैयार की गई। इस योजना से 4.66 एमएलडी पानी मिलना था। पानी सिर्फ 2.45 एमएलडी ही मिला। वो भी गर्मी में जरूरत के समय और भी कम हो जाता है। कमिश्नर गढ़वाल चंद्र सिंह नपल्च्याल की जांच रिपोर्ट में साफ किया गया था कि सिर्फ 50 प्रतिशत पानी ही मिला है। ऐसे में इस योजना में 35.64 करोड़ का दुरुपयोग हुआ।
 18 मार्च 2015 को तत्कालीन अपर मुख्य सचिव पेयजल एस राजू ने जांच नियोजन विभाग को सौंपी, जो आज तक पेयजल विभाग को नहीं सौंपी गई। इस मामले में नौ इंजीनियरों को नोटिस जारी हुए थे। अधिकतर को रिटायर हुए चार साल से ज्यादा का समय हो गया है, ऐसे में अब उन पर कार्रवाई नहीं हो सकती।

बीरोंखाल पेयजल योजना
पौड़ी जिले की बीरोंखाल पंपिंग पेयजल योजना में सिविल डिवीजन ने योजना के हेड का गलत चयन कर दिया था। इसके चलते विद्युत एवं यांत्रिक डिवीजन ने गलत क्षमता के पंप खरीदे। जो पंप खरीदे गए, उनसे पानी असल जगह तक पहुंच ही नहीं पाया। पंप बदलने पड़े। इससे वित्तीय नुकसान हुआ। इस योजना में तत्कालीन एक्सईएन और पूर्व प्रबंध निदेशक रविंद्र कुमार, तत्कालीन अधीक्षण अभियंता और मौजूदा मुख्य अभियंता गढ़वाल सुभाष चंद्र, तत्कालीन जूनियर इंजीनियर बीपी पाठक, यूसी झा, एसपी गुप्ता को दोषी ठहराया गया। कार्रवाई कुछ नहीं हुई।

भरसार विवि पेयजल योजना
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली औद्यानिकी भरसार विवि में बिना पानी के ही टैंक बना दिए गए। योजना की लागत बढ़ाने को बेवजह प्रोटेक्शन वॉल बनी। इस मामले में भी तत्कालीन एक्सईएन व पूर्व प्रबंध निदेशक रविंद्र कुमार, तत्कालीन एई व रिटायर पीके गुप्ता, जेई बीएस नेगी को दोषी माना गया है। कार्रवाई कुछ नहीं हुई।

कैलाड पेयजल योजना
पौड़ी जिले की ही कैलाड़ पेयजल योजना में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति का पैसा दूसरे कार्यों में लगा दिया गया। योजना की जांच हुई, तो गड़बड़ी पाई गई। इस पर तत्कालीन एक्सईएन रविंद्र कुमार, एई आरएस पंवार, पीएस चौहान को दोषी ठहराया गया। इस मामले में भी कार्रवाई कुछ नहीं हुई।

योजना आयोग की सुस्त रफ्तार
पेयजल योजनाओं की जांच को लेकर योजना आयोग की रफ्तार बेहद सुस्त है। 2015 की नानघाट की जांच आज तक पूरी नहीं हुई। आवंलाघाट की जांच जरूर पूरी की गई। इस जांच में गजब ये है कि योजना के शुरू होते ही गंदा पानी आने और अन्य गड़बड़ियों पर पांच इंजीनियरों को निलंबित किया गया था। इस योजना की मुख्य लाइन में ही पत्थर फंस गया था। रिपोर्ट में कुछ तकनीकी खामियां भी बताई गई, लेकिन किसी प्रकार की कोई संस्तुति नहीं की गई, बल्कि गड़बड़ियों के लिए विभागीय इंजीनियरों की बजाय अज्ञात कारणों और ठेकेदार पर ठीकरा फोड़ा गया है।

जिन लोगों पर कार्रवाई होनी थी, उन्हें रिटायर हुए चार साल से ज्यादा का समय निकल गया है। एक मामले में पूर्व एमडी रविंद्र कुमार से 15 लाख की रिकवरी होनी है, उसमें शासन स्तर से उन्हें पक्ष रखने का एक और मौका दिया गया है। जो लोग अभी विभाग में हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई अंतिम चरण में है।
वीसी पुरोहित, एमडी पेयजल निगम

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