ऊर्जा विभाग पर सीएम की सख्ती, अब उधड़ेंगी पॉवर सेक्टर के घपलों की परतें

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कुंभ मेला 2010, एनएच 74, फर्नेश, जिटको, एनकेजी, सौभाग्य योजना, करोड़ों के गबन के मामले आएंगे सामने
वित्त विभाग के स्पेशल ऑडिट के आदेश से उड़ी इंजीनियरों की नींद, कई अफसरों की भूमिका सवालों के घेरे में
जीटी रिपोर्टर, देहरादून
ऊर्जा विभाग की बढ़ती शिकायतों और बढ़ते घाटे को लेकर सीएम त्रिवेंद्र रावत ने सख्त रुख अपना लिया है। उन्होंने यूपसीएल, पिटकुल जैसे दोनों अहम निगमों में पहली बार एक साथ आईएएस तैनात कर अपने सख्त इरादे जता दिए हैं। अब ने वित्त विभाग कि ओर से स्प्स्पे्पेल ष्ट के आदेश से साफ हो गया है कि भृष्ट इंजीनियरों, अफसरों को और मोहलत नहीं दी जाएगी।
ऐसे में ऊर्जा के तीनों निगमों के स्पेशल ऑडिट से पॉवर सेक्टर के सालों से दबे घपले, घोटालों के बाहर आने की उम्मीद बढ़ गई है। राज्य गठन के बाद पहली बार तरीके से ऊर्जा के तीनों निगमों का स्पेशल ऑडिट होने जा रहा है। ऐसे में बड़े पैमाने पर घोटालों का बाहर आना तय माना जा रहा है। जांच को लेकर सालों से दबे कुंभ मेला 2010, एनएच 74, फर्नेश, जिटको, एनकेजी, सौभाग्य योजना, करोड़ों के गबन मामलों से जुड़े आरोपियों की नींद उड़ी हुई है। क्योंकि तीनों निगमों में टेंडरों में गड़बड़ी, वित्तीय अनियमितता, करोड़ों के गबन के हर साल मामले सामने आते हैं। विभागीय इंजीनियरों की लापरवाही के नाम पर ऐसी स्थिति पैदा की जाती है कि आर्बिटेशन में ठेकेदारों को करोड़ों का लाभ और निगमों को नुकसान पहुंचता है। कर्मचारी संगठन इन्हीं गड़बड़ियों की जांच को लेकर स्पेशल ऑडिट की मांग कर रहे थे।

अफसरों ने मुनाफे से निगम को पहुंचाया घाटे में
यूपीसीएल अफसरों की लापरवाही ने एक मुनाफे में रहने वाले निगम को घाटे में पहुंचा दिया है। इसी खस्ताहाल वित्तीय हालत ने सरकार को स्पेशल ऑडिट के लिए मजबूर किया। राज्य में बिजली उपभोक्ता और राजस्व बढ़ने के बावजूद घाटा बढ़ता गया। यहां तक की सरकार का ही फ्री इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी का 850 करोड़ तक निगम चुका नहीं पाया। जबकि पिछले करीब पांच सालों से हर साल औसतन 825 करोड़ रुपये सरकार को मिल रहे थे। इस बार महज 29 करोड़ रुपये मिले। बड़ी बिजली कंपनियों का 1200 करोड़ से ज्यादा का बकाया भुगतान नहीं हो पाया। बैंकों का ओवरड्रा अपनी उच्च सीमा 800 करोड़ से ऊपर पहुंच गया। जबकि चार साल पहले ओडी किसी भी सूरत में 100 करोड़ से ऊपर नहीं पहुंचता था। इसके साथ ही कुछ सालों में एनएच 74, हरिद्वार 55 लाख गबन, पॉवर परचेज, एक्यूरेट मीटर, फर्नेस इंडस्ट्री, पॉवर लाइन शिफ्टिंग, इंसुलेटर, जिटको, जीनस कंपनी समेत तमाम घोटालों और बिजली चोरी की शिकायतों ने सरकार को मजबूर कर दिया।

पिटकुल में भी उड़ी हुई है नींद
घोटालों के नाम पर पिटकुल में ट्रांसफार्मर घपला, श्रीनगर काशीपुर 400 केवी लाइन कोबरा कंपनी घोटाला, टेंडर में गड़बड़ी, चहेती कंपिनयों को काम देने को देश की नामी कंपनियों तक को बाहर करने की शिकायतें रहीं।

यूजेवीएनएल की भी खुलेंगी परतें
यहां निगम में डाकपत्थर सोलर प्रोजेक्ट, ईआरपी टेंडर विवाद, चीला पॉवर हाउस मरम्मत घपला, पछवादून के प्रोजेक्ट को लेकर भी तमाम विवाद खड़े हुए। आरटीआई में जानकारियां सामने लाईं गईं, लेकिन कहीं कोई कार्रवाई नहीं हुई।

कुंभ मेले के आरोपियों को मिलते रहे प्रमोशन पर प्रमोशन
घपले, घोटालों की जांच रिपोर्ट को ऊर्जा निगमों में डंप कर दिया जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2010 कुंभ मेले घपले की जांच रिपोर्ट है। करीब तीन स्तर पर इन घपलों की जांच हुई। जांच में साफ पाया गया कि बड़े स्तर पर वित्तीय अनियमितता, टेंडरों में गड़बड़ी हुई। जांच रिपोर्ट में अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति कर फाइल शासन भेजी गई। जो अभी तक डंप है। इस बीच ये अफसर जरूर निदेशक, महाप्रबंधक, मुख्य अभियंता जैसे अहम पदों पर पहुंच गए।

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