संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण में दोहरे मानक, विभागों में 17 साल से नियमितीकरण की बाट जोह रहे हैं कर्मचारी, सहकारी बैंकों में पांच साल में ही बैकडोर एंट्री वाले कर्मचारियों का नियमितीकरण
देहरादून।
राज्य में संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण में दोहरे मानक अपनाए जा रहे हैं। एक ओर 17 से 20 साल की सेवा के बाद भी कर्मचारी नियमित नहीं हो रहे हैं। दूसरी ओर महज तीन से पांच साल के भीतर ही राज्य सहकारी बैंक और जिला सहकारी बैंकों में कर्मचारियों को नियमित किया जा रहा है।
पहले बैकडोर एंट्री से उनकी भर्ती हो रही है। उसके बाद उन्हें सरकारी नियमों, व्यवस्थाओं को ताक पर रख कर नियमित किया जा रहा है। जबकि राज्य में संविदा कर्मचारियों की भर्ती और उनके नियमितीकरण पर पूरी तरह रोक लगी हुई है। राज्य में 2013 की नियमितीकरण नियमावली को हाईकोर्ट ने स्टे किया हुआ है। 2016 की नियमितीकरण की नियमावली को निरस्त किया है। इसी कारण राज्य के सरकारी विभागों समेत निगम, निकाय, पंचायत, प्राधिकरण, बोर्ड, परिषद में कर्मचारी न तो संविदा पर भर्ती हो रहे हैं। न ही पूर्व में भर्ती कर्मचारी नियमित।
बावजूद इसके सहकारिता अकेला ऐसा महकमा है, जहां संविदा कर्मचारियों के नियमित होने पर खुली छूट है। वर्ष 2016 के बाद ही राज्य सहकारी बैंक, जिला सहकारी बैंक और सहकारी समितियों में करीब 250 कर्मचारी नियमित हो चुके हैं। ये कर्मचारी कब भर्ती हुए, कब इनका समय पूरा हुआ, कब नियमित किए गए, इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है।
आउटसोर्स में भी खेल
सहकारी बैंकों और समितियों में आउटसोर्स कर्मचारियों के नाम पर भी खेल किया जा रहा है। पहले उन्हें आउटसोर्स पर रखा जा रहा है। फिर चुपके से उन्हीं में से कुछ को संविदा पर किया जा रहा है। संविदा वालों को बाद में नियमित किया जा रहा है।
पांच साल से पहले नियमित करने की तैयारी
बैंकों में कई पहुंच वाले ऐसे भी कर्मचारी हैं, जिन्हें पांच साल से पहले ही नियमित किया जा रहा है। कई की फाइल भी तैयार कर दी गई है। इन कर्मचारियों को नियमित करने के खिलाफ बैंक प्रबंधन का एक धड़ा विरोध में भी है।
उपनल वाले कर रहे डेढ़ दशक से इंतजार
नियमितीकरण और समान काम का समान वेतन देने की मांग को लेकर उपनल, पीआरडी कर्मचारी डेढ़ दशक से इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद भी उन्हें हर बार वेतन बढ़ोत्तरी को सड़कों पर ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। उन्हें नियमित, संविदा पर लेने को लेकर कोई गंभीरता हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं दिखाई जा रही है। उल्टा सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक चली गई है।
सहकारी बैंकों के अपने बोर्ड है। अपने अलग नियम है। स्वायत्त संस्था है। बोर्ड से नियमितीकरण का प्रस्ताव पास कर कर्मचारियों को नियमित किया जाता है। हालांकि रजिस्ट्रार कॉपरेटिव से मंजूरी ली जाती है। नियमित वही होंगे, जो न्यूनतम पांच साल का समय पूरा करते हैं। इसमें कोई गलती नहीं होगी। बोर्ड से कर्मचारियों को नियमित करने का भी प्रस्ताव आया है।
बीएम मिश्रा, रजिस्ट्रार कॉपरेटिव
वर्ष 2013 की नियमितीकरण नियमावली को कोर्ट ने स्टे किया है। 2016 की नियमावली को निरस्त किया है। प्रयास किया जा रहा है कि कोर्ट से जल्द फैसला हो जाए। ताकि आगे उसी अनुरूप कर्मचारियों को नियमित करने को नियमावली बनाई जा सके। किसी दूसरे विभाग में किस तरह कर्मचारी नियमित किए जा रहे हैं, इसे दिखवाया जाएगा। यदि कोई भी काम नियम विरुद्ध होगा, जरूर कार्रवाई होगी।
सुबोध उनियाल, शासकीय प्रवक्ता