कांग्रेस संगठन की उपेक्षा को लेकर छलका पूर्व सीएम हरीश रावत का दर्द, बोले न मंच दिया, न पोस्टर में स्थान, अब पढ़ाया जा रहा है सामूहिकता का पाठ, बोले, उत्तराखंड कांग्रेस ने मुझे सामूहिकता के लायक कभी समझा ही नहीं है
देहरादून।
पूर्व सीएम हरीश रावत अपने सोशल मीडिया के मैसेज के जरिए खुद को चर्चा में बनाए रखते हैं। लेकिन बुधवार को उनके ताबड़तोड़ किए गए कई ट्विट ने सर्द मौसम में कांग्रेस के भीतर की सियासी गर्मी को बढ़ा दिया। कांग्रेस संगठन की उपेक्षा को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत का दर्द न सिर्फ छलका, बल्कि बोले कि कांग्रेस संगठन ने न उन्हें मंच दिया, न पोस्टर में स्थान, अब उन्हें सामूहिकता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। बोले, उत्तराखंड कांग्रेस ने मुझे सामूहिकता के लायक कभी समझा ही नहीं है
विधानसभा 2022 के चुनाव में चेहरा घोषित न करने और सामूहिकता में चुनाव लड़ने की कांग्रेस की तैयारियों को पूर्व सीएम हरीश रावत ने आईंना दिखाया है। उन्होंने सामूहिकता के फार्मूले को न सिर्फ सिरे से खारिज कर दिया है, बल्कि सामूहिकता की बात करने वालों को कई मंचों पर अपनी उपेक्षा भी याद दिलाई। पूर्व सीएम ने कहा कि उत्तराखंड कांग्रेस ने कभी भी सामूहिकता के लायक नहीं समझा। यह उसी दिन स्पष्ट हो गया था, जब प्रदेश कांग्रेस के नवनिर्वाचित सदस्यों व पदाधिकारीयों की पहली बैठक हुई। उस बैठक में मंच से पार्टी के शुभंकर महामंत्री संगठन ने तीन बार नेताओं की जिंदाबाद के नारे लगवाए। एआईसीसी के सचिवों की भी जिंदाबाद हुई। लेकिन नवनियुक्त एआईसीसी महासचिव हरीश रावत को मंच से जिंदाबाद बुलवाने के लायक भी नहीं समझा गया।
पूर्व सीएम ने कहा कि संगठनात्मक ढांचे में कुछ लोगों की संस्तुति करने को भी मुझे एआईसीसी का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। उस समय इस सामूहिकता का पालन नहीं हुआ है। न ही मैंने उस पर कभी आवाज नहीं उठाई है। पार्टी के आधिकारिक पोस्टरों में मेरा नाम और चेहरा स्थान नहीं पा पाया, मैंने उस पर भी कभी कोई सवाल खड़ा नहीं किया। यहां तक की मुझे कभी कभी मंचों पर स्थान मिलने को लेकर संदेह रहता है तो मैं, अपने साथ अपना मोड़ा लेकर चलता हूं। ताकि पार्टी के सामने कोई असमंजस न आए। आज भी उन्होंने केवल असमंजस हटाने का प्रयास किया है।
कहा कि यदि इन बातों को अलग रखकर भी विचार करें, तो भी सीएम का चेहरा घोषित करना पार्टी हित में होगा। प्रदेश में जगह जगह जन आंदोलन हो रहे हैं। राज्य में दो प्रमुख पद हैं, उन जन संघर्षों को कांग्रेस के साथ जोड़ने के लिये आवश्यक है कि अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष उन आंदोलनों में पहुंचे। अन्याय व पीड़ितों जिनमें कांग्रेसजन भी शामिल हैं, उनका मनोबल बढ़ाएं। आज हरीश रावत के लिये ऐसा करना संभव नहीं है। हमें युवा हाथों में बागडोर देने को उत्सुक होना चाहिए। पार्टी के भविष्य के लिये जनरेशन चेंज को प्रोत्साहित करना ही अब पार्टी की सेवा है। मैं अपने को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। ताकि अन्य राज्यों और क्षेत्रों में भी यह सिलसिला आगे बढ़ सके।
सीएम का चेहरा घोषित करने में संकोच क्यों
पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि सीएम का चेहरा घोषित करने को संकोच कैसा। यदि मेरे सम्मान में यह संकोच है तो मैंने स्वयं अपनी तरफ से यह विनती कर ली है कि जिसे भी सीएम का चेहरा घोषित किया जाएगा। मैं, उसके पीछे खड़ा रहूंगा। रणनीति के दृष्टिकोण से भी आवश्यक है कि हम भाजपा के राज्यों में जीत को अपनाए जा रहे फार्मूले का कोई स्थानीय तोड़ निकालें। स्थानीय तोड़ यही हो सकता है कि भाजपा का चेहरा बनाम कांग्रेस का चेहरा। चुनाव में लोगों के सामने रखा जाए। ताकि लोग स्थानीय सवालों के तुलनात्मक आधार पर निर्णय करें। ऐसा करने से चुनाव में हम अच्छा कर पाएंगे। फिर सामूहिकता की अचानक याद क्यों की जा रही है।