यूपीसीएल में कौन बचा रहा है कमर्शियल के इंजीनियरों को, बैलेंस शीट में क्यों नजर नहीं आए 70 करोड़
देहरादून।
यूपीसीएल में बिजली वसूली के बकाया 70 करोड़ के प्रकरण में एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं। जिस कंपनी के साथ दिसंबर में करार समाप्त हो गया था, उसे मार्च तक विस्तार दे दिया गया। उसके बाद दोबारा फिर उसी का चयन कर लिया गया। अब जब मामला खुला है, तो इंजीनियरिंग संवर्ग से जुड़े तमाम अफसर कमर्शियल विंग को बचाने में जुट गए हैं। सारा ठीकरा वित्त के सिरे मढ़ने की तैयारी है। इस मामले में गजब ये है कि वित्त के अफसर भी अपना पुराना हिसाब किताब बराबर करने को अपने वित्त के ही दूसरे अफसर, कर्मचारियों की बलि चढ़ाने की तैयारी में हैं। सचिव ऊर्जा के दखल के बाद जरूर असल दोषियों की तलाश शुरू हो गई है।
बिजली बाजार में बेचने को लेकर कंपनियों से करार की जिम्मेदारी कमर्शियल विंग की है। करार जब दिसंबर में पूरा हो गया था, तो क्यों उसे मार्च तक बढ़ाया गया। क्यों अप्रैल तक नई कंपनी के चयन का इंतजार हुआ। जब करोड़ों का बकाया कंपनी पर था, तो क्यों दोबारा उसी का चयन हुआ। क्यों कमर्शियल के अफसर तीन दिन में भुगतान सुनिश्चित नहीं कर पाए। जब लंबे समय से कंपनी समय पर भुगतान नहीं कर रही थी, तो क्यों उसके बाद करार बीच में ही निरस्त नहीं किया गया। कंपनी का पैसा नियमित रूप से 2018 से आना बंद हुआ। क्यों इतने सालों तक उसे डिफॉल्टर घोषित नहीं किया गया। इस मामले में चूक वित्त के स्तर से भी हुई है, लेकिन असल भूमिका कमर्शियल विंग की नजर आ रही है। इसके बाद भी कमर्शियल विंग को बचाने को लेकर ऐड़ी चोटी का जोर लगाया जा रहा है। हालांकि सचिव ऊर्जा राधिका झा ने लिखित आदेश जारी कर साफ कर दिया है कि कोई भी दोषी नहीं बचेगा।
सचिव ऊर्जा की फटकार के बाद आए चार करोड़
यूपीसीएल मैनेजमेंट की लापरवाही व ढिलाई के बाद सचिव ऊर्जा राधिका झा ने मोर्चा संभाला। उनकी फटकार का ये असर रहा कि तत्काल यूपीसीएल को चार करोड़ कंपनी से मिल गए हैं। सचिव ऊर्जा राधिका झा की डांट के बाद यूपीसीएल की एक टीम दिल्ली दौड़ी। कंपनी ने एक करोड़ रुपये यूपीसीएल के खाते में ट्रांसफर किए। तीन करोड़ के चेक दिए हैं। कंपनी का मणिपुर में पांच करोड़ और जम्मू कश्मीर में छह करोड़ रुपये रुकवा दिया गया है।
एक यूपीसीएल में दोहरी प्रक्रिया कैसे
यूपीसीएल में कमर्शियल विंग में दोहरी प्रक्रिया भी सवालों में है। इस मामले में कमर्शियल विंग पूरा दोष वित्त के ऊपर मढ़ रहे हैं। जबकि टेंडर, करार समेत तमाम दूसरी प्रक्रिया कमर्शियल विंग ने पूरी की है। तीन दिन में वसूली सुनिश्चित होने का जब नियम है, तो क्यों कमर्शियल एक महीने बाद बिलिंग करता रहा। कमर्शियल विंग ने क्यों बेची गई बिजली का पूरा हिसाब नहीं रखा। जबकि इसी यूपीसीएल की कमर्शियल विंग में एनटीपीसी, एनएचपीसी, गैस कंपनियों से खरीदी जाने वाली बिजली, किए गए भुगतान का पूरा ब्यौरा रखा जाता है। तो इस मामले में कमर्शियल के अफसर क्यों बकाया वसूली को लेकर सोए रहे।
इन सवालों के कौन देगा जवाब
क्यों डिफॉल्टर कंपनी का दोबारा टेंडर में चयन हुआ
जब कंपनी के साथ तीन दिन में भुगतान करने का करार था, तो क्यों एक महीने में बिलिंग हुई
बाद के समय में क्यों समय पर बिलिंग नहीं की गई
बैलेंश शीट में क्यों बकाया 70 करोड़ का खुलासा नहीं हुआ
क्यों विभागीय ऑडिट में चूक नहीं पकड़ी गई, क्यों ऑडिट कमेटी के समक्ष मामला नहीं गया