सिंह को फिर घेरने चला सियारों का टोला, इस बार सिंह चूका तो भारी कीमत चुकाएगा उत्तराखंड, आखिर क्या है सीएम त्रिवेंद्र के खिलाफ इस षडयंत्र की वजह 

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सिंह को फिर घेरने चला सियारों का टोला, इस बार सिंह चूका तो भारी कीमत चुकाएगा उत्तराखंड, आखिर क्या है सीएम त्रिवेंद्र के खिलाफ इस षडयंत्र की वजह

देहादून।

उत्तराखंड में सिंह को घेरने भ्रष्ट सियासी सियारों का टोला एकबार फिर आ जुटा है। सियासी दल बदलू मेढ़कों ने फिर उछल कूद मचानी शुरू कर दी है। सियासी षडयंत्रकारियों ने दूसरे मंडल की ठंडी शांत झील किनारे वालों को भी साथ मिल एक नया षडयंत्र रच डाला है। इस बार इन सियासी षड़यंत्रकारी सियारों की साजिश सफल हुई, तो इसकी एक बड़ी कीमत इस पहाड़ी उत्तराखंड राज्य को चुकानी होगी। इन सियासी सियारों के निशाने पर मार्च 2017 से ही राज्य में अस्थिरता का माहौल पैदा करना शुरू कर दिया। कभी छह महीने, तो कभी 15 अगस्त, कभी स्थापना दिवस, 26 जनवरी की तारीख को नए मुखिया के कमान संभालने का हल्ला मचाया जाता है। षड़यंत्र का ये सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।


इस बार सरकार को अस्थिर करने की ये साजिश सफल हुई, तो दोबारा इस राज्य को भ्रष्टों से मुक्ति दिलाने को साहसिक फैसले लेने की हिम्मत कोई नहीं करने वाला। इस बार सरकार को अस्थिर करने के लिए कुछ नहीं मिला, तो षड्यंत्रकारियों को लाभ देने को एक ऐसा फैसला हुआ है, जिसे नियम कानून के जानकार आसानी से हजम नहीं कर पा रहे थे। तो सर्वोच्च संस्था भी हतप्रभ है। कैसे एक ऐसा बेतुका फैसला हो सकता है। ये सभी के समझ से परे है। पूरे सिस्टम पर ही सवाल उठ खड़े हुए हैं। कैसे बिना सम्बंधित व्यक्ति से उसका पक्ष जाने बिना ही सीधे आदेश कर दिए गए। केस किस बात का होता है, मांग क्या होती है और फैसला कुछ और ही हो जाता है। बड़े सियासी तरीके से किसी एक खास वर्ग को लाभ पहुंचाने को महान विद्धान ऐसे एक सरकारों को अस्थिर करने वाले की शिकायत के एक बिंदू का स्वत: संज्ञान तक ले लेते हैं। तत्काल दो दिन के भीतर तोता कहलाए जाने वाली एजेंसी को मुकदमा दर्ज करने, सभी कागजात उपलब्ध कराए जाने का अति उत्साही आदेश भी कर दिया जाता है। आखिर क्यों भाई, इस मामले में इस तेजी का क्या मतलब है। ये तेजी तमाम भ्रष्टाचार से जुड़े दूसरे मामलों में क्यों नहीं हुए। क्यों ये तेजी 56 हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट, ऋषिकेश स्टुर्जिया, ऋषिकेश आमबाग टिहरी बांध प्लॉट आवंटन, एमडी यूपीसीएल की फर्जी नियुक्ति मामले में नहीं दिखाई गई। ऐसे तो कल किसी भी अफसर, सीएम, मंत्री, सरकार का काम करना ही मुश्किल हो जाएगा। किसी भी भ्रष्ट की किसी सरकार, मंत्री, अफसर ने नहीं सुनी, तो कर देगा वो सीधे अपील। हो जाएंगे सीबीआई जांच के आदेश। कर दिया जाएगा सारे जहां में बदनाम। ऐसे में इस बार न्याय के देवता कहलाने वाले भी सवालों के घेरे में हैं। इतिहास के पन्नों में दर्ज उनका भी हिसाब होगा।
सवाल फिर वही बार बार है कि यदि इस बार इन सियारों की घेरेबंदी में सिंह घिरा, तो फिर इस पवित्र उत्तराखंड को लुटने से कोई नहीं बचा पाएगा। फिर कोई सीएम भ्रष्ट मीडिया के दलालों के सरगना, महा भृष्टाचारी मिश्रा जैसे मक्कारों को जेल की सलाखों के पीछे डालने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। 2017 से पहले आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कोई सीएम इन भ्रष्टाचारियों पर हाथ डालने की हिम्मत भी कर सकता था। सत्ता की दलाली के पॉवर सेंटर को पहली बार किसी सीएम ने जड़ से उखाड़ फैंकने की हिम्मत की है। सीएम आवास, सीएम सचिवालय से इन्हें बेदखल करने की हिम्मत भी कर सकता था। ऐसा पहले ही दिन से हुआ, इसी का नतीजा है, जो पहले ही दिन से षड़यंत्र रचने का सिलसिला जो शुरू हुआ, वो बदस्तूर आज तक जारी है। राज्य के लिए दुखद पहलू ये है कि इस षड़यंत्र में इस बार उन लोगों की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई, जिनके पास लोग सबसे बड़ी उम्मीद में जाते हैं।

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