शासन का कार्मिक विभाग फिर कर्मचारियों के निशाने पर, जल निगम इंजीनियरों ने खोली कलई, सीएम से शिकायत

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शासन का कार्मिक विभाग फिर कर्मचारियों के निशाने पर, जल निगम इंजीनियरों ने खोली कलई, सीएम से शिकायत
देहरादून। मुख्य संवाददाता
शासन के कार्मिक विभाग की कार्यशैली हमेशा से विवादों, सवालों के घेरे में रही है। कभी पीसीएस और प्रमोटी पीसीएस अफसरों की वरिष्ठता निर्धारण पर सवाल उठे। तो कभी शासन में शिथिलता का लाभ न देने के नियम के बावजूद जल संस्थान के सहायक अभियंताओं को स्पेशल केस में अनुमति दे दी जाती है। इस बार जल निगम के इंजीनियरों ने कलई खोली है।
उत्तराखंड पेयजल निगम एससी एसटी इम्प्लाईज एसोसिएशन ने शासन के कार्मिक विभाग की भूमिका पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री से शिकायत की है। एसोसिएशन के महासचिव सुनील कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वरिष्ठता निर्धारण को लेकर गलत सेवा नियमावली को आधार बनाने का आरोप लगाया है। कहा कि जल निगम में वर्ष 2004-05 में जूनियर इंजीनियरों की भर्ती हुई। उस समय जल निगम में अधीनस्थ अभियंत्रण सेवा नियमावली 1978 लागू थी। छह दिसंबर 2019 को जेई सीनियरिटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यवस्था देने के आदेश किए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर पेयजल निगम ने कार्मिक विभाग से मार्गदर्शन मांगा। कार्मिक विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन किए बिना ही सरकारी सेवक ज्येष्ठता नियमावली 2002 को आधार बनाते हुए अपना सुझाव दिया। जबकि कार्मिक विभाग को अधीनस्थ अभियंत्रण सेवा नियमावली 1976 के अनुसार अपनी संस्तुति करनी चाहिए थी।
सुनील कुमार ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय भी अपने आदेश में साफ कर चुका है कि सरकारी सेवक ज्येष्ठता नियमावली 2002 वर्तमान प्रकरण और निगम कार्मिकों पर लागू नहीं है। इस मामले में भी अधीनस्थ अभियंत्रण सेवा नियमावली 1978 के रूल छह के अनुसार वरिष्ठता रोस्टर के आधार पर निर्धारित किए जाने के आदेश दिए। कार्मिक विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश में दी गई व्यवस्था को भी दरकिनार करते हुए उसे नियमावली को आधार बनाया, जो निगम में लागू ही नहीं है। नौ महीने बाद भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार वरिष्ठता निर्धारित न होने पर भी नाराजगी जताई। कार्मिक विभाग की टिप्पणी को हटाने को कार्रवाई के निर्देश देने की मांग की।

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